पिछले दिनों दिल्ली मे आयोजित जश्न ए अदब के छठे संस्करण का सदस्य के रूप मे भाग लेना मेरे लिए गर्व का विषय है। जहां दुनिया के तमाम हिस्सो मे जाति,धर्म,साम्प्रदाय,क्षेत्रवाद की भावना प्रबल होती जा रही है,ऐसे मे इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन एक अच्छी कोशिश है। जश्न ए अदब वास्त्व मे सिर्फ एक जश्न ना होकर भारत की साझी विरासत , सांस्कृतिक मूल्यो , गंगा जमुनी तहजीब का प्रतिबिंब है। जहाँ इस तरह के कार्यक्रम मुख्यतः व्यवसायिकता की तरफ उन्मुख हो गए है , ऐसे मे जश्न ए अदब का अपने मूल्यों को बचा कर रखना सुखद एहसास देती है। यह कोई भाषा विशेष का जश्न न होकर हिंदुस्तान के विविधतावो का जश्न था। इसके कार्यक्रमो की सूची देख कर जैसे परिचर्चा,गजल संध्या,मुशायरा, पढ़न्त ,कव्वाली ,किताबो का विमोचन ,दास्तानगोई का सफर देख कर आप आसानी से अंदाजा लगा सकते है।
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