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Saturday, February 7, 2015

"लोकतंत्र की जीत "

आज दिल्ली मे चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से हो गया   दिल्ली के चुनाव मे चाहें जो भी पार्टी जीते , एक जीत तो जरूर होगी , वह  है लोकतंत्र की । दिल्ली  का चुनाव कई मायनो मे अहम है , जैसे इस चुनाव मे  सारी  पार्टियां घोषणापत्र के द्वारा लड़ रही है , कहीं कोई दंगा-फ़साद ,जाति-धर्म , वर्ग , हिंसा आदि की बाते नहीं हुई । यह सच्चे मायनों मे लोकतंत्र के सफलता के चिन्ह है । दिल्ली जैसे महानगरी राज्य जहां देश के हर छेत्र,हर जाति ,हर धर्म ,हर वर्ग  के लोग निवास करते है,यहाँ अगर कोई शुरूवात होती है , तो इसका सकारात्मक असर पुरे देश पर  पड़ेगा। इस चुनाव मई मुख्यतः तीन पार्टियाँ यथा आप, भाजपा, कांग्रेस के बीच मुकाबला है। तीनो पार्टियों के घोषणापत्रों  पर दृष्टिपात करने से पता चलता है की इनका पूरा जोर मुख्यतः शिक्षा, स्वास्थ,महिला सुरक्षा,रोजगार,बिजली और पानी की सुलभता अादि है। दिल्ली के हर कोने , हर गली-मुहल्लों, सड़को के किनारे होर्डिंग के द्वारा, समाचारपत्रों ,सोशल मीडिया आदि के द्वारा इन पार्टियो ने अपने अपने घोषणापत्र आम लोगो के जुबान पर चढा दिया है,सो जीते कोई भी पार्टी इन घोषणापत्रों मे किए गये वादों से मुकरना आसान नहीं होगा। कुछ चीजे जो घोषणापत्रों मे नहीं दर्शाई गयी है वह है महिलाओं के स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दे , वित्त प्रबन्धन आदि
                                                  हर पार्टी अपने प्रचार सभाओं मे महिलाओं की सुरक्षा की बात तो करते है, और समाधान करने के अपने अपने तरीके सुलझाये है जैसे सिक्योरिटी कैमरा, हर बस मे गार्ड, महिला विशेष बस सुविधा, आत्मसुरक्षा की प्रशिक्षण, सुरक्षा किट, मुफ़्त वाई फाई इत्यादि । हर कोई महिलाओं की सुरक्षा देने की बात करता है, अगर हम वास्तव मे महिलाओं के लिए कुछ करना चाहते है, तो पहले हमे अपनी सोच बदलनी होगी, भेदभाव की नीति त्यागना होगा। लिंग भेदभाव तो कुछ मामलो मे तब शुरू हो जाती है जब बच्ची माँ के पेट मे  होती है। अतः अगर हमें महिलाओं के लिए कुछ करना है तो हमें उन्हें बराबरी का मौक़ा देना होगा, भेदभाव ख़त्म करना होगा, शिक्षा, रोजगार,सशक्तिकरण पर जोर देना होगा, पितृसत्तात्मक मानसिकता को बदलना होगा, अन्यथा कितनी भी सुरक्षा क्यों न दी जाए, जबतक महिलाएं सशक्त नहीं होंगी,अपने फैसले खुद ना ले सकेंगीं, तथा जबतक सामाजिक आडम्बरों का डर होगा, कैसे यह मुमकिन है की उसे व्यवस्था पर विश्वास आए। उस मामले मे  क़ानून और पुलिस भी कुछ नहीं कर सकती जब महिला खुद सामाजिक डर की वजह से मामला ही दर्ज न कराए। महिलाओं की अगर हम सच्चे मायने मे  मदद करना चाहते है तो वह है की हम उनके मार्ग मे बाधा  न उत्पन्न करे। बाकि हमारे देश की महिलाये इतनी सशक्त है की वह अपना अधिकार खुद ले लेंगी
                                                            दिल्ली के चुनाव के मुद्दे पर फिर आते  है, यह कांग्रेस के द्वारा भूतकाल मे किये काम, भाजपा वर्तमान की स्थिति, और आप भविष्य दिखाकर वोट मांग रही है। तीनो पार्टियो के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार योग्य है। आने वाले समय मे यह साफ़ हो जायेगा की मुख्यमंत्री कौन होगा इस तरह के सकारात्मक चुनाव प्रचार, मुद्दो की राजनीति, विकास की बातो से एक अच्छी लोकतांत्रिक परिपाटी की शुरूवात हुवी है। उम्मीद है पूरा देश इसकी जद में आ जाये उत्तर प्रदेश और बिहार जहां देश की एक चौथाई जनसंख्या निवास करती है हम उम्मीद करते है की वहां भी जाति-धर्म, अगड़े-पिछड़ों, साम्प्रदायिकता से परे मुद्दों की राजनीति शुरू हो। जहां पार्टियां अपने जाति-धर्म के आधार पर नहीं बल्कि घोषणापत्र के आधार पर वोट की राजनीति करे